Beliefs, Practices, Prayers, Set of Laws, a way to be safe from all the negatives in the world, a way to justify your bad deeds, or to be the simplest in the deeds
मैं जैन हूँ और मैंने जितना भी पढ़ा है अपनी धर्म की किताबों में, मैं यही कह सकता हूँ की
"सुख - दुःख कर्मों के उदय से नही होता, यह तोः मन में आए भावों के अनुसार हम महसूस करते हैं"
उदाह्रद के तौर पे देखा जाए तोः पाँचों पान्दवोँ को एक तरह की सजा दी गई थी ( गरम लोहे के कपड़े पहनाये गए ) परन्तु उन लोगों ने जो सुख - दुःख महसूस किया वह अलग - अलग किया, यदि कर्मों के उदय से सुख - दुःख होता तोः पाँचों के एक जैसा सुख / दुःख होता परन्तु ऐसा नही हुआ। एक को ज्यादा महसूस हुआ दूसरे को कम, जबकि कर्म का उदय एक सा हुआ फ़िर भी सुख / दुःख अलग - अलग, ऐसा क्यों ?
हम अपनी रोज़ - मर्रा की ज़िंदगी में भी देख सकते हैं की एक जैसी परिस्थितियों में कोई तोह दुखी हो जाता कोई सुखी रहता है । इसीलिए कहा जा सकता है की सुख होना - दुःख होना अपने भावों पर निर्भर करता है न की कर्मों के उदय पर ।
इसीलिए जीव को समता भाव रखने चाहिए, सुख में ज्यादा खुश न हो और दुःख में उदास न हो ।
जय जिनेन्द्र
1 comment:
Great blog my friend,would have been still better if added a snap of the old temple you mentioned a few KMs away from BAHUBALIJI....
;)
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